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"एक बोसा / कैफ़ी आज़मी" के अवतरणों में अंतर
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लम्हें भर को ये दुनिया ज़ुल्म छोड़ देती है | लम्हें भर को ये दुनिया ज़ुल्म छोड़ देती है | ||
लम्हें भर को सब पत्थर मुस्कुराने लगते हैं. | लम्हें भर को सब पत्थर मुस्कुराने लगते हैं. | ||
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07:42, 5 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
जब भी चूम लेता हूँ उन हसीन आँखों को
सौ चराग अँधेरे में जगमगाने लगते हैं
फूल क्या शगूफे क्या चाँद क्या सितारे क्या
सब रकीब कदमों पर सर झुकाने लगते हैं
रक्स करने लगतीं हैं मूरतें अजन्ता की
मुद्दतों के लब-बस्ता ग़ार गाने लगते हैं
फूल खिलने लगते हैं उजड़े उजड़े गुलशन में
प्यासी प्यासी धरती पर अब्र छाने लगते हैं
लम्हें भर को ये दुनिया ज़ुल्म छोड़ देती है
लम्हें भर को सब पत्थर मुस्कुराने लगते हैं.