भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पतवार / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (पतवार / शिवमंगल सिंह सुमन का नाम बदलकर पतवार / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ कर दिया गया है)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।
  
आज सिन्धु ने विष उगला है<br>
+
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है<br>
+
लहरों का यौवन मचला है
आज ह्रदय में और सिन्धु में<br>
+
आज ह्रदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार<br><br>
+
साथ उठा है ज्वार
  
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>
+
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।
  
लहरों के स्वर में कुछ बोलो<br>
+
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो<br>
+
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में<br>
+
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार<br><br>
+
तूफानों का प्यार
  
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>
+
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।
  
यह असीम, निज सीमा जाने<br>
+
यह असीम, निज सीमा जाने
सागर भी तो यह पहचाने<br>
+
सागर भी तो यह पहचाने
मिट्टी के पुतले मानव ने<br>
+
मिट्टी के पुतले मानव ने
कभी ना मानी हार<br><br>
+
कभी ना मानी हार
  
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>
+
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।
  
सागर की अपनी क्षमता है<br>
+
सागर की अपनी क्षमता है
पर माँझी भी कब थकता है<br>
+
पर माँझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पन्दन है<br>
+
जब तक साँसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है<br>
+
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले<br>
+
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार<br><br>
+
सातों सागर पार
  
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>
+
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।

09:35, 5 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।

आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज ह्रदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।

लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।

यह असीम, निज सीमा जाने
सागर भी तो यह पहचाने
मिट्टी के पुतले मानव ने
कभी ना मानी हार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।

सागर की अपनी क्षमता है
पर माँझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।