भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दुख / अचल वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
(हिज्जे)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अचल वाजपेयी
 
|रचनाकार=अचल वाजपेयी
|संग्रह=शत्रु-शिविर तथा अन्य कविताएँ / अचल वाजपेयी
+
|संग्रह=शत्रु-शिविर तथा अंय कविताएँ / अचल वाजपेयी
 
}}
 
}}
  
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
कमरे में प्रवेश कर गया है
 
कमरे में प्रवेश कर गया है
  
अंधेरे बन्द कमरे का कोना-कोना
+
अंधेरे बंद कमरे का कोना-कोना
  
 
उजास से भर गया है
 
उजास से भर गया है
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
मेरी गोद में आ गया है
 
मेरी गोद में आ गया है
  
एकान्त में सैकड़ों गुलाब चिटख गए हैं
+
एकांत में सैकड़ों गुलाब चिटख गए हैं
  
 
काँटों से गुँथे हुए गुलाब
 
काँटों से गुँथे हुए गुलाब
  
एक धुन है जो अन्तहीन निविड़ में
+
एक धुन है जो अंतहीन निविड़ में
  
 
दूर तक गहरे उतरती है
 
दूर तक गहरे उतरती है
  
  
मेरे चारों ऒर उसने
+
मेरे चारों ओर उसने
  
 
एक रक्षा-कवच बुन दिया है
 
एक रक्षा-कवच बुन दिया है

09:07, 29 जून 2008 का अवतरण

उसे जब पहली बार देखा

लगा जैसे

भोर की धूप का गुनगुना टुकड़ा

कमरे में प्रवेश कर गया है

अंधेरे बंद कमरे का कोना-कोना

उजास से भर गया है


एक बच्चा है

जो किलकारियाँ मारता

मेरी गोद में आ गया है

एकांत में सैकड़ों गुलाब चिटख गए हैं

काँटों से गुँथे हुए गुलाब

एक धुन है जो अंतहीन निविड़ में

दूर तक गहरे उतरती है


मेरे चारों ओर उसने

एक रक्षा-कवच बुन दिया है

अब मैं तमाम हादसों के बीच

सुरक्षित गुज़र सकता हूँ