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15:34, 27 अक्टूबर 2007 का अवतरण
हर शब्द
कहीं न कहीं
कुछ बोलता है
वह कभी आग
कभी काला धुआँ
कभी धुएँ का
अहसास होत है
आओ, इस शब्द को
जलती आग-सा जियें