भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सबके दिल में ग़म होता है / इरशाद खान सिकंदर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर }} {{KKCatGhazal}} <poem> सबके...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:14, 15 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

सबके दिल में ग़म होता है
सिर्फ़ ज़ियादा कम होता है

चोट लगे तो रोकर देखो
आंसू भी मरहम होता है

ख़त लिखता हूँ जब जब उसको
तब तब काग़ज़ नम होता है

ख़ामोशी के अंदर देखो
शोर सा इक हरदम होता है
 
गहराई से सोच के देखो
शोला भी शबनम होता है