भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुसर्रतों की साअतों में इख़्तेसार कर लिया / 'महशर' इनायती" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='महशर' इनायती }} {{KKCatGhazal}} <poem> मुसर्रतों...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:44, 18 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

मुसर्रतों की साअतों में इख़्तेसार कर लिया
हयात-ए-ग़म को हम ने और साज़-गार कर लिया

क़सम जब उस ने खाई हम ने ऐतबार कर लिया
ज़रा सी देर ज़िंदगी को ख़ुश-गवार कर लिया

वो आज चाहते थे बात कुछ बढ़े मगर वो हम
के बात बात पर सुकूत इख़्तियार कर लिया

कहो के महर-ए-सुब्ह-ताब आए हो के बे-नक़ाब
कोई बस आ चुका किसी का इंतिज़ार कर लिया

क़दम क़दम पे हादसे क़दम क़दम पे इंक़िलाब
हमें तो देखों ज़िंदगी का ऐतबार कर लिया