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"और इशरत की तमन्ना क्या करें / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी" के अवतरणों में अंतर

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15:10, 19 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

और इशरत की तमन्ना क्या करें
सामने तू हो तुझे देखा करें

महव हो जाएँ तसव्वुर में तेरे
हम भी अपने क़तरे को दरिया करें

हम को है हर रोज़ हर वक़्त इंतिज़ार
बंदा-परवर गाह गाह आया करें

चारा-गर कर चाहिए करना इलाज
उस को भी अपना सा दीवाना करें

उन के आने का भरोसा हो न हो
राह हम उन की मगर देखा करें

हम नहीं ना-वाक़िफ़ रस्म-ए-अदब
दिल की बे-ताबी को ‘वहशत’ क्या करें