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बूढा पनवाडी, उस के बालों में मांग है न्यारी | बूढा पनवाडी, उस के बालों में मांग है न्यारी |
08:32, 20 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
बूढा पनवाडी, उस के बालों में मांग है न्यारी
आँखों में जीवन की बुझती अग्नि की चिंगारी
नाम की इक हट्टी के अन्दर बोसीदा अलमारी
आगे पीतल के तख्ते पर उस की दुनिया सारी
पान, कत्था, सिगरेट, तम्बाकू, चूना, लोंग, सुपारी
उम्र उस बूढ़े पनवाडी की पान लगाते गुजरी
चूना घोलते, छालिया काटते, कत्था पिघलाते गुजरी
सिगरेट की खाली डिब्बियों के महल बनाते गुजरी
कितने शराबी मुश्तारियों से नैन मिलाते गुजरी
चंद कसीले पत्तों की गुत्थी सुलझाते गुजरी
कौन इस गुत्थी को सुलझाए, दुनिया एक पहेली
दो दिन एक फटी चादर में दुःख की आंधी झेली
दो कडवी साँसें लीं, दो चिलमों की राख उंडेली
और फिर उस के बाद न पूछों, खेल जो होनी खेली
पनवाडी की अर्थी उठी, बाबा, अल्लाह बेली
सुभ भजन की तान मनोहर झनन झनन लहराए
एक चिता की राख हवा के झोंकों में खो जाए
शाम को उस का कमसिन बाला बैठा पान लगाए
झन झन, ठन ठन, चूने वाली कटोरी बजती जाए
एक पतंगा दीपक पर जल जाए, दूसरा आये