भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जिस भी रूह का / मजीद 'अमज़द'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मजीद 'अमज़द' }} {{KKCatNazm}} <poem> जिस भी रूह क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

08:42, 20 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

जिस भी रूह का घूँघट सरकाओ.....नीचे इक
मंफ़ेअत का रूख़ अपने इत्मिनानों में रौशन है
हम समझते थे घिरते उमड़ते बादलों के नीचे जब ठंडी हवा चलेगी
दिन बदलेंगे

लेकिन अब देखा है घने घने सायों के नीचे
ज़िंदगियों की सल्सबीलों में
ढकी ढकी जिन नालियों से पानी आ आ कर गिरता है
सब ज़ेर-ए-ज़मीन निज़ामों की नीली कड़ियाँ हैं
सब तम्लीकें हैं सब तज़लीलें हैं
कौन सहारा देगा उन को जिन के लिए सब कुछ इक कर्ब है
कौन सहारा देगा उन को जिन का सहारा आसमानों के ख़लाओं में बिखरा हुआ
धुंदला धुंदला इक अक्स है
मैं उन अक्सों का अक्कास हूँ