भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"संवेदनाएं चुक गईं / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=रमा द्विवेदी
 
|रचनाकार=रमा द्विवेदी
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
संवेदनाएं चुक गईं,
 +
अब और सह सकते नहीं ।
 +
बन गया पत्थर दिल हमारा,
 +
रहमोकरम तुम पे कर सकते नहीं ॥
  
संवेदनाएं चुक गईं,<br>
+
कोशिशें तुमने बहुत कीं,
अब और सह सकते नहीं <br>
+
हमको मिटाने के लिए
बन गया पत्थर दिल हमारा,<br>
+
ज़ुल्म तुमने क्या- क्या किये?
रहमोकरम तुम पे कर सकते नहीं <br>
+
हमें पत्थर बनाने के लिए
  
 +
हमारा दिल वो पत्थर है,
 +
जो हर तूफ़ां को झेल जाता है ।
 +
अंकित हो जाती हर तस्वीर उस पर
 +
फिर नहीं मिट पाता है ॥
  
कोशिशें तुमने बहुत कीं,<br>
+
शायद तुम्हें मालूम न हो,
हमको मिटाने के लिए ।<br>
+
पत्थर का निशान होता है अमिट।
ज़ुल्म तुमने क्या- क्या किये?<br>
+
सदियों बाद पढ़ सकते हैं उसे,
हमें पत्थर बनाने के लिए <br>
+
उसका इतिहास होता है अमिट
  
 +
तुमने जो विष बीज बोया है,
 +
कई पीढियां मूल्य चुकाएंगी।
 +
अब भी नहीं संभलोगे गर,
 +
कायर तुम्हें बतलाएंगी ॥
  
हमारा दिल वो पत्थर है,<br>
+
तुमने रचा इतिहास जो,
जो हर तूफ़ां को झेल जाता है ।<br>
+
कैसे बदल अब पाओगे ?
अंकित हो जाती हर तस्वीर उस पर<br>
+
सदियों के इस पाप को,
फिर नहीं मिट पाता है ॥<br>
+
किस पुण्य से धो पाओगे?
  
 +
तुम करोगे जुल्म हम सहते रहेंगे-
 +
वक्त वो जाता रहा ।
 +
अब हम कहेंगे तुम सुनोगे,
 +
वक्त  ऐसा आ गया ॥
  
शायद तुम्हें मालूम न हो,<br>
+
चाहे जितना आजमां लो,
पत्थर का निशान होता है अमिट।<br>
+
देखेंगे कितना जोर तुम में है?
सदियों बाद पढ़ सकते हैं उसे, <br>
+
मोड़ देंगे रुख हवा का,
उसका इतिहास होता है अमिट ॥<br>
+
हौसला इतना अभी भी हम में है ॥
 
+
</poem>
 
+
तुमने जो विष बीज बोया है,<br>
+
कई पीढियां मूल्य चुकाएंगी।<br>
+
अब भी नहीं संभलोगे गर,<br>
+
कायर तुम्हें बतलाएंगी ॥<br>
+
 
+
 
+
तुमने रचा इतिहास जो,<br>
+
कैसे बदल अब पाओगे ?<br>
+
सदियों के इस पाप को,<br>
+
किस पुण्य से धो पाओगे?<br>
+
 
+
 
+
तुम करोगे जुल्म हम सहते रहेंगे-<br>
+
वक्त वो जाता रहा ।<br>
+
अब हम कहेंगे तुम सुनोगे,<br>
+
वक्त  ऐसा आ गया ॥<br>
+
 
+
 
+
चाहे जितना आजमां लो,<br>
+
देखेंगे कितना जोर तुम में है?<br>
+
मोड़ देंगे रुख हवा का,<br>
+
हौसला इतना अभी भी हम में है ॥<br>
+

09:35, 21 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

संवेदनाएं चुक गईं,
अब और सह सकते नहीं ।
बन गया पत्थर दिल हमारा,
रहमोकरम तुम पे कर सकते नहीं ॥

कोशिशें तुमने बहुत कीं,
हमको मिटाने के लिए ।
ज़ुल्म तुमने क्या- क्या किये?
हमें पत्थर बनाने के लिए ॥

हमारा दिल वो पत्थर है,
जो हर तूफ़ां को झेल जाता है ।
अंकित हो जाती हर तस्वीर उस पर
फिर नहीं मिट पाता है ॥

शायद तुम्हें मालूम न हो,
पत्थर का निशान होता है अमिट।
सदियों बाद पढ़ सकते हैं उसे,
उसका इतिहास होता है अमिट ॥

तुमने जो विष बीज बोया है,
कई पीढियां मूल्य चुकाएंगी।
अब भी नहीं संभलोगे गर,
कायर तुम्हें बतलाएंगी ॥

तुमने रचा इतिहास जो,
कैसे बदल अब पाओगे ?
सदियों के इस पाप को,
किस पुण्य से धो पाओगे?

तुम करोगे जुल्म हम सहते रहेंगे-
वक्त वो जाता रहा ।
अब हम कहेंगे तुम सुनोगे,
वक्त ऐसा आ गया ॥

चाहे जितना आजमां लो,
देखेंगे कितना जोर तुम में है?
मोड़ देंगे रुख हवा का,
हौसला इतना अभी भी हम में है ॥