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− | + | लोभ, लालच, स्वार्थ वृत्त्ति, | |
− | + | अनहद,धन व मद का | |
− | + | नहीँ रहता कोई सँतुलन! | |
− | + | मैं ही सच , मेरा धर्म ही सच! | |
− | + | सारे धर्म, वे सारे, गलत हैं ! | |
− | + | क्यों सोचता, ऐसा है आदमी ?? | |
− | + | भूल कर, अपने से बडा सच!! | |
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− | + | मनोमन्थन है अब अनिवार्य, | |
− | + | सत्य का सामना, करो नर, | |
− | + | उठो बन कर नई आग, | |
− | मनोमन्थन है अब अनिवार्य, | + | जागो, बुलाता तुम्हें, विहान, |
− | सत्य का सामना, करो नर, | + | है जो,आया अब समर का! |
− | उठो बन कर नई आग, | + | </poem> |
− | जागो, बुलाता | + | |
− | है जो,आया अब समर का ! | + |
09:35, 22 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
हर कोई चाहता है,
हो मेरा एक नन्हा आशियाँ
काम मेरे पास हो,
घर पर मेरे अधिकार हो,
पर, यही, मेरा और तेरा ,
क्योँ बन जाता, सरहदों में बँटा,
शत्रुता का, कटु व्यवहार?
रोटी की भूख, इन्सानों को,
चलाती है,
रात दिन के फेर में पर,
चक्रव्यूह कैसे , फँसाते हैँ ,
सबको, मृत्यु के पाश में ?
लोभ, लालच, स्वार्थ वृत्त्ति,
अनहद,धन व मद का
नहीँ रहता कोई सँतुलन!
मैं ही सच , मेरा धर्म ही सच!
सारे धर्म, वे सारे, गलत हैं !
क्यों सोचता, ऐसा है आदमी ??
भूल कर, अपने से बडा सच!!
मनोमन्थन है अब अनिवार्य,
सत्य का सामना, करो नर,
उठो बन कर नई आग,
जागो, बुलाता तुम्हें, विहान,
है जो,आया अब समर का!