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अंधेरों के दरख़्त / रति सक्सेना
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|रचनाकार=रति सक्सेना
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परछाइयों के बीज़
कुछ इस तरह बिख़र गए
पौ फटनी थी कि
छा गया अंधेरा पूरी तरह।
</poem>
Lalit Kumar
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