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"जंगल होती वह / रति सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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वह जो जो कहता गया  
 
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यह वह वह मानती गई
 
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उसने कहा-- तेरी आँखे कमल की पंखुड़ियाँ
 
उसने कहा-- तेरी आँखे कमल की पंखुड़ियाँ
 
 
इसने कहा-- अच्छा
 
इसने कहा-- अच्छा
 
 
उसने कहा-- नाक तोते की चोंच
 
उसने कहा-- नाक तोते की चोंच
 
 
इसने कहा-- अच्छा
 
इसने कहा-- अच्छा
 
 
और होंठ रसभरियाँ, दाँत दाड़िम
 
और होंठ रसभरियाँ, दाँत दाड़िम
 
 
स्तन कमर जांघे
 
स्तन कमर जांघे
 
  
 
इसने टटोल कर देखा देह का टुकड़ा टुकड़ा
 
इसने टटोल कर देखा देह का टुकड़ा टुकड़ा
 
 
आँखे मूंदे कहती रही हाँ... हाँ... हाँ...
 
आँखे मूंदे कहती रही हाँ... हाँ... हाँ...
 
  
 
अब वह थोड़ी वनस्पति थोड़ी पंछी
 
अब वह थोड़ी वनस्पति थोड़ी पंछी
 
 
थोड़ी-सी जानवर  
 
थोड़ी-सी जानवर  
 
 
बन गई थोड़ा-सा आसमान
 
बन गई थोड़ा-सा आसमान
 
 
टहनियाँ खिलीं फूल सूखे
 
टहनियाँ खिलीं फूल सूखे
 
 
न जाने कब बीज टपक गया कोख से
 
न जाने कब बीज टपक गया कोख से
 
 
चल दिया दरख़्त की यात्रा को
 
चल दिया दरख़्त की यात्रा को
 
 
इस बार वह कह न सकी हाँ... हाँ... हाँ...  
 
इस बार वह कह न सकी हाँ... हाँ... हाँ...  
 
 
झरने लगा रोयाँ-रोयाँ
 
झरने लगा रोयाँ-रोयाँ
 
 
बनती हुई भरपूर जंगल
 
बनती हुई भरपूर जंगल
 
 
सोचने लगी क्यों नहीं किसी ने कहा
 
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"तेरी कोख है सबसे सुन्दर"
 
"तेरी कोख है सबसे सुन्दर"
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18:23, 29 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

वह जो जो कहता गया
यह वह वह मानती गई
उसने कहा-- तेरी आँखे कमल की पंखुड़ियाँ
इसने कहा-- अच्छा
उसने कहा-- नाक तोते की चोंच
इसने कहा-- अच्छा
और होंठ रसभरियाँ, दाँत दाड़िम
स्तन कमर जांघे

इसने टटोल कर देखा देह का टुकड़ा टुकड़ा
आँखे मूंदे कहती रही हाँ... हाँ... हाँ...

अब वह थोड़ी वनस्पति थोड़ी पंछी
थोड़ी-सी जानवर
बन गई थोड़ा-सा आसमान
टहनियाँ खिलीं फूल सूखे
न जाने कब बीज टपक गया कोख से
चल दिया दरख़्त की यात्रा को
इस बार वह कह न सकी हाँ... हाँ... हाँ...
झरने लगा रोयाँ-रोयाँ
बनती हुई भरपूर जंगल
सोचने लगी क्यों नहीं किसी ने कहा
"तेरी कोख है सबसे सुन्दर"