"अल्जाइमर के दलदल में माँ / रति सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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थरथराते क़दम | थरथराते क़दम | ||
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बढे़ भविष्य की ओर | बढे़ भविष्य की ओर | ||
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पाँव रगड़ा, फिसल पड़ी वह | पाँव रगड़ा, फिसल पड़ी वह | ||
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भूत में, लगी किलकने | भूत में, लगी किलकने | ||
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देखा पेड़ बात कर रहे हैं | देखा पेड़ बात कर रहे हैं | ||
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बतियाने लगी | बतियाने लगी | ||
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टहनियों-पंत्तियों से | टहनियों-पंत्तियों से | ||
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नीम की, नाना के आंगन में | नीम की, नाना के आंगन में | ||
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वापस लाई मैं उसे, ज़ोर-ज़बरदस्ती कर | वापस लाई मैं उसे, ज़ोर-ज़बरदस्ती कर | ||
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नारियल दरख़्तों की ऊँचाई में कि | नारियल दरख़्तों की ऊँचाई में कि | ||
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रूठ गई | रूठ गई | ||
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जा पहुँची दौड़ | जा पहुँची दौड़ | ||
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मामा की बरैठी में | मामा की बरैठी में | ||
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खोजने लगी वे सारें पते | खोजने लगी वे सारें पते | ||
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स्याही मिट चली थी जिनकी | स्याही मिट चली थी जिनकी | ||
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खींच-खींच कर लाती हूँ | खींच-खींच कर लाती हूँ | ||
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बन जाती है वह | बन जाती है वह | ||
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नन्हीं बच्ची बार-बार | नन्हीं बच्ची बार-बार | ||
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अल्जाइमर की दलदल में | अल्जाइमर की दलदल में | ||
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फँसती हुई | फँसती हुई | ||
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माँ। | माँ। | ||
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'''2 | '''2 | ||
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अब मेरी बारी है | अब मेरी बारी है | ||
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मैं बनाऊँगी तुम्हारी चुटिया | मैं बनाऊँगी तुम्हारी चुटिया | ||
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तुमने खींच दिए न | तुमने खींच दिए न | ||
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मेरे सारे बाल | मेरे सारे बाल | ||
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चुपड़ दिया तेल | चुपड़ दिया तेल | ||
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झरे पके बालों पर हाथ फिराती | झरे पके बालों पर हाथ फिराती | ||
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प्रौढ़ा बनी बच्ची सोच रही है | प्रौढ़ा बनी बच्ची सोच रही है | ||
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कब चिड़चिड़ाती बच्ची | कब चिड़चिड़ाती बच्ची | ||
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जवान हुई, कब माँ बूढ़ी | जवान हुई, कब माँ बूढ़ी | ||
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बन गई बच्ची। | बन गई बच्ची। | ||
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'''3 | '''3 | ||
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परेशान है वह आजकल | परेशान है वह आजकल | ||
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स्मृतियों के झगड़ों से | स्मृतियों के झगड़ों से | ||
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अभी जो घटा | अभी जो घटा | ||
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पुंछ गया | पुंछ गया | ||
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पीछे से चला आया | पीछे से चला आया | ||
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स्मृतियों का सिलसिला | स्मृतियों का सिलसिला | ||
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भूल रही है | भूल रही है | ||
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चलते शब्दों का अर्थ | चलते शब्दों का अर्थ | ||
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घुसपैठ कर रही हैं | घुसपैठ कर रही हैं | ||
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किस्सागोइयाँ | किस्सागोइयाँ | ||
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सो रही थीं जो | सो रही थीं जो | ||
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कभी छींके में चढ़ कर। | कभी छींके में चढ़ कर। | ||
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'''4 | '''4 | ||
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बिस्तरा गीला कर | बिस्तरा गीला कर | ||
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तकिए से छिपाती हुई वह | तकिए से छिपाती हुई वह | ||
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देखती है चोरी-चोरी | देखती है चोरी-चोरी | ||
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फटकार खा भी | फटकार खा भी | ||
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खिलाती हँसी की कली | खिलाती हँसी की कली | ||
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होठों के कोने में तैरती | होठों के कोने में तैरती | ||
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शैतानी, | शैतानी, | ||
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ओफ़ | ओफ़ | ||
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यह माँ है कि | यह माँ है कि | ||
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अल्हड़ बच्ची। | अल्हड़ बच्ची। | ||
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'''5 | '''5 | ||
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आजकल बात करते हैं | आजकल बात करते हैं | ||
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सभी, उससे | सभी, उससे | ||
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कुर्सी मेज़ या फिर संदूक | कुर्सी मेज़ या फिर संदूक | ||
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चले आते हैं उसके कमरे में | चले आते हैं उसके कमरे में | ||
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बेधड़क, बंदर-कुत्ते शेर-चीते | बेधड़क, बंदर-कुत्ते शेर-चीते | ||
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मक्खियों से खेलती | मक्खियों से खेलती | ||
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चीटियाँ नाचती | चीटियाँ नाचती | ||
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न जाने कब और कैसे | न जाने कब और कैसे | ||
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माँ बन गई | माँ बन गई | ||
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उन सब की सखी | उन सब की सखी | ||
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सयानों को नहीं दीखते कभी। | सयानों को नहीं दीखते कभी। | ||
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कटती पतंग-सी | कटती पतंग-सी | ||
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हाथ से खिसक रही है | हाथ से खिसक रही है | ||
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माँ, अल्जाइमर की दलदल में फँसी। | माँ, अल्जाइमर की दलदल में फँसी। | ||
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18:39, 29 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
1
थरथराते क़दम
बढे़ भविष्य की ओर
पाँव रगड़ा, फिसल पड़ी वह
भूत में, लगी किलकने
देखा पेड़ बात कर रहे हैं
बतियाने लगी
टहनियों-पंत्तियों से
नीम की, नाना के आंगन में
वापस लाई मैं उसे, ज़ोर-ज़बरदस्ती कर
नारियल दरख़्तों की ऊँचाई में कि
रूठ गई
जा पहुँची दौड़
मामा की बरैठी में
खोजने लगी वे सारें पते
स्याही मिट चली थी जिनकी
खींच-खींच कर लाती हूँ
बन जाती है वह
नन्हीं बच्ची बार-बार
अल्जाइमर की दलदल में
फँसती हुई
माँ।
2
अब मेरी बारी है
मैं बनाऊँगी तुम्हारी चुटिया
तुमने खींच दिए न
मेरे सारे बाल
चुपड़ दिया तेल
झरे पके बालों पर हाथ फिराती
प्रौढ़ा बनी बच्ची सोच रही है
कब चिड़चिड़ाती बच्ची
जवान हुई, कब माँ बूढ़ी
बन गई बच्ची।
3
परेशान है वह आजकल
स्मृतियों के झगड़ों से
अभी जो घटा
पुंछ गया
पीछे से चला आया
स्मृतियों का सिलसिला
भूल रही है
चलते शब्दों का अर्थ
घुसपैठ कर रही हैं
किस्सागोइयाँ
सो रही थीं जो
कभी छींके में चढ़ कर।
4
बिस्तरा गीला कर
तकिए से छिपाती हुई वह
देखती है चोरी-चोरी
फटकार खा भी
खिलाती हँसी की कली
होठों के कोने में तैरती
शैतानी,
ओफ़
यह माँ है कि
अल्हड़ बच्ची।
5
आजकल बात करते हैं
सभी, उससे
कुर्सी मेज़ या फिर संदूक
चले आते हैं उसके कमरे में
बेधड़क, बंदर-कुत्ते शेर-चीते
मक्खियों से खेलती
चीटियाँ नाचती
न जाने कब और कैसे
माँ बन गई
उन सब की सखी
सयानों को नहीं दीखते कभी।
कटती पतंग-सी
हाथ से खिसक रही है
माँ, अल्जाइमर की दलदल में फँसी।