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"तुम सुधि बन-बनकर बार-बार / भगवतीचरण वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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तुम सुधि बन-बनकर बार-बार
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दे जाती हो उपहार मुझे ।<br><br>
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तुम अपनी थीं, जग अपना था ।<br><br>
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तिल-तिल, मेरा निर्मित संसार मुझे।
 
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अधिकार बना पागलपन का<br>
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अब मिटा रहा प्रतिपल,<br>
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तिल-तिल, मेरा निर्मित संसार मुझे ।<br><br>
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22:20, 29 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

तुम सुधि बन-बनकर बार-बार
क्यों कर जाती हो प्यार मुझे?
फिर विस्मृति बन तन्मयता का
दे जाती हो उपहार मुझे।

मैं करके पीड़ा को विलीन
पीड़ा में स्वयं विलीन हुआ
अब असह बन गया देवि,
तुम्हारी अनुकम्पा का भार मुझे।

माना वह केवल सपना था,
पर कितना सुन्दर सपना था
जब मैं अपना था, और सुमुखि
तुम अपनी थीं, जग अपना था।

जिसको समझा था प्यार, वही
अधिकार बना पागलपन का
अब मिटा रहा प्रतिपल,
तिल-तिल, मेरा निर्मित संसार मुझे।