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"स्मृतिकण / भगवतीचरण वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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निष्ठुर-सी आधी रात प्रिये! अपना यह व्यापक अंधकार, | निष्ठुर-सी आधी रात प्रिये! अपना यह व्यापक अंधकार, | ||
मेरे सूने-से मानस में, बरबस भर देतीं बार-बार; | मेरे सूने-से मानस में, बरबस भर देतीं बार-बार; | ||
मेरी पीडाएँ एक-एक, हैं बदल रहीं करवटें विकल; | मेरी पीडाएँ एक-एक, हैं बदल रहीं करवटें विकल; | ||
किस आशंका की विसुध आह! इन सपनों को कर गई पार | किस आशंका की विसुध आह! इन सपनों को कर गई पार | ||
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मैं बेचैनी में तडप रहा; क्या जाग रही होगी तुम भी? | मैं बेचैनी में तडप रहा; क्या जाग रही होगी तुम भी? | ||
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अपने सुख-दुख से पीडित जग, निश्चिंत पडा है शयित-शांत, | अपने सुख-दुख से पीडित जग, निश्चिंत पडा है शयित-शांत, | ||
मैं अपने सुख-दुख को तुममें, हूँ ढूँढ रहा विक्षिप्त-भ्रांत; | मैं अपने सुख-दुख को तुममें, हूँ ढूँढ रहा विक्षिप्त-भ्रांत; | ||
यदि एक साँस बन उड सकता, यदि हो सकता वैसा अदृश्य | यदि एक साँस बन उड सकता, यदि हो सकता वैसा अदृश्य | ||
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यदि सुमुखि तुम्हारे सिरहाने, मैं आ सकता आकुल अशांत | यदि सुमुखि तुम्हारे सिरहाने, मैं आ सकता आकुल अशांत | ||
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पर नहीं, बँधा सीमाओं से, मैं सिसक रहा हूँ मौन विवश; | पर नहीं, बँधा सीमाओं से, मैं सिसक रहा हूँ मौन विवश; | ||
मैं पूछ रहा हूँ बस इतना- भर कर नयनों में सजल याद, | मैं पूछ रहा हूँ बस इतना- भर कर नयनों में सजल याद, | ||
क्या जाग रही होगी तुम भी? | क्या जाग रही होगी तुम भी? | ||
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22:28, 29 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
क्या जाग रही होगी तुम भी?
निष्ठुर-सी आधी रात प्रिये! अपना यह व्यापक अंधकार,
मेरे सूने-से मानस में, बरबस भर देतीं बार-बार;
मेरी पीडाएँ एक-एक, हैं बदल रहीं करवटें विकल;
किस आशंका की विसुध आह! इन सपनों को कर गई पार
मैं बेचैनी में तडप रहा; क्या जाग रही होगी तुम भी?
अपने सुख-दुख से पीडित जग, निश्चिंत पडा है शयित-शांत,
मैं अपने सुख-दुख को तुममें, हूँ ढूँढ रहा विक्षिप्त-भ्रांत;
यदि एक साँस बन उड सकता, यदि हो सकता वैसा अदृश्य
यदि सुमुखि तुम्हारे सिरहाने, मैं आ सकता आकुल अशांत
पर नहीं, बँधा सीमाओं से, मैं सिसक रहा हूँ मौन विवश;
मैं पूछ रहा हूँ बस इतना- भर कर नयनों में सजल याद,
क्या जाग रही होगी तुम भी?