लेखक: [[भगवतीचरण वर्मा]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=भगवतीचरण वर्मा]]}}{{KKCatKavita}}<poem>
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~तुम मृगनयनी, तुम पिकबयनीतुम छवि की परिणीता-सी,अपनी बेसुध मादकता मेंभूली-सी, भयभीता सी ।
तुम मृगनयनी, तुम पिकबयनी<br>उल्लास भरी आई होतुम छवि की परिणीता-सीआईं उच्छ्वास भरी,<br>अपनी बेसुध मादकता तुम क्या जानो मेरे उर में<br>भूली-सी, भयभीता सी कितने युग की प्यास भरी ।<br><br>
तुम उल्लास भरी आई हो<br>शत-शत मधु के शत-शत सपनोंतुम आईं उच्छ्वास भरीकी पुलकित परछाईं-सी,<br>मलय-विचुम्बित तुम क्या जानो मेरे उर में<br>ऊषा कीकितने युग की प्यास भरी ।<br><br>अनुरंजित अरुणाई-सी ;
शततुम अभिमान-शत मधु के शत-शत सपनों<br>भरी आई होकी पुलकित परछाईंअपना नव-सीअनुराग लिए,<br>मलय-विचुम्बित तुम ऊषा क्या जानो कि मैं तप रहाकिस आशा की<br>अनुरंजित अरुणाई-सी ;<br><br>आग लिए ।
तुम अभिमान-भरी आई हो<br>भरे हुए सूनेपन के तमअपना नवमें विद्युत की रेखा-अनुराग लिए,<br>सी;तुम क्या जानो कि मैं तप रहा<br>असफलता के पट पर अंकितकिस तुम आशा की आग लिए ।<br><br>लेखा-सी ;
भरे हुए सूनेपन के तम<br>आज हृदय में विद्युत की रेखा-सी;<br>खिंच आई होअसफलता के पट पर अंकित<br>तुम असीम उन्माद लिए,तुम आशा की लेखाजब कि मिट रहा था मैं तिल-सी ;<br><br>तिलसीमा का अपवाद लिए ।
आज हृदय चकित और अलसित आँखों में खिंच आई हो<br>तुम असीम उन्माद सुख का संसार लिए,<br>जब कि मिट रहा था मैं तिल-तिल<br>सीमा मंथर गति में तुम जीवन का अपवाद गर्व भरा अधिकार लिए ।<br><br>
चकित और अलसित आँखों डोल रही हो आज हाट में<br>तुम सुख का संसार लिएबोल प्यार के बोल यहाँ,<br>मंथर गति में तुम जीवन का<br>मैं दीवाना निज प्राणों सेगर्व भरा अधिकार लिए करने आया मोल यहाँ ।<br><br>
डोल रही हो आज हाट में<br>अरुण कपोलों पर लज्जा कीबोल प्यार के बोल यहाँभीनी-सी मुस्कान लिए,<br>मैं दीवाना निज प्राणों से<br>सुरभित श्वासों में यौवन केकरने आया मोल यहाँ ।<br><br>अलसाए-से गान लिए ,
अरुण कपोलों पर लज्जा की<br>बरस पड़ी हो मेरे मरू मेंभीनी-सी मुस्कान लिएतुम सहसा रसधार बनी,<br>सुरभित श्वासों में यौवन के<br>तुममें लय होकर अभिलाषाअलसाए-से गान लिए ,<br><br>एक बार साकार बनी ।
बरस पड़ी तुम हँसती-हँसती आई हो मेरे मरू में<br>तुम सहसा रसधार बनीहँसने और हँसाने को,<br>तुममें लय होकर अभिलाषा<br>मैं बैठा हूँ पाने को फिरएक बार साकार बनी पा करके लुट जाने को ।<br><br>
तुम हँसती-हँसती आई हो<br>हँसने और हँसाने को,<br>मैं बैठा हूँ पाने को फिर<br>पा करके लुट जाने को ।<br><br> तुम क्रीड़ा की उत्सुकता-सी,<br>तुम रति की तन्मयता-सी;<br>मेरे जीवन में तुम आओ,<br>तुम जीवन की ममता-सी।<br><br/poem>