"मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम / भगवतीचरण वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भगवतीचरण वर्मा }}<poem> मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम ऐ अम...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=भगवतीचरण वर्मा | |रचनाकार=भगवतीचरण वर्मा | ||
− | }}<poem> | + | }} |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम | मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम | ||
ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम, | ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम, | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 38: | ||
गूँज उठे जय-हिंद नाद से - | गूँज उठे जय-हिंद नाद से - | ||
सकल नगर औ' ग्राम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम। | सकल नगर औ' ग्राम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम। | ||
+ | </poem> |
11:13, 30 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम
ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
तेरे उर में शायित गांधी, 'बुद्ध औ' राम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
हिमगिरि-सा उन्नत तव मस्तक,
तेरे चरण चूमता सागर,
श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ
वाणी में है गीता का स्वर।
ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम।
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
हरे-भरे हैं खेत सुहाने,
फल-फूलों से युत वन-उपवन,
तेरे अंदर भरा हुआ है
खनिजों का कितना व्यापक धन।
मुक्त-हस्त तू बाँट रही है सुख-संपत्ति, धन-धाम।
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
प्रेम-दया का इष्ट लिए तू,
सत्य-अहिंसा तेरा संयम,
नयी चेतना, नयी स्फूर्ति-युत
तुझमें चिर विकास का है क्रम।
चिर नवीन तू, ज़रा-मरण से -
मुक्त, सबल उद्दाम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
एक हाथ में न्याय-पताका,
ज्ञान-द्वीप दूसरे हाथ में,
जग का रूप बदल दे हे माँ,
कोटि-कोटि हम आज साथ में।
गूँज उठे जय-हिंद नाद से -
सकल नगर औ' ग्राम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।