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"कन्याओं को आने दो / मनोज भावुक" के अवतरणों में अंतर

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11:08, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

खिलने दो ख़ुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
आने दो रे आने दो, उन्हें इस जीवन में आने दो

जाने किस-किस प्रतिभा को तुम
गर्भपात मे मार रहे हो
जिनका कोई दोष नहीं, तुम
उन पर धर तलवार रहे हो
बंद करो कुकृत्य – पाप यह,
नयी सृष्टि रच जाने दो
आने दो रे आने दो, उन्हें इस जीवन में आने दो
खिलने दो ख़ुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

जिस दहेज-दानव के डर से
करते हो ये ज़ुल्मो-सितम
क्यों नहीं उसी दुष्ट-दानव को
कर देते तुम जड़ से ख़तम
भ्रूणहत्या का पाप हटे, अब ऐसा जाल बिछाने दो
खिलने दो ख़ुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

बेटा आया, ख़ुशियाँ आईं
सोहर-माँगर छम-छम-छम
बेटी आयी, जैसे आया
कोई मातम का मौसम
मन के इस संकीर्ण भाव को, रे मानव मिट जाने दो
खिलने दो ख़ुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

चौखट से सरहद तक नारी
फिर भी अबला हाय बेचारी?
मर्दों के इस पूर्वाग्रह मे
नारी जीत-जीत के हारी
बंद करो खाना हक़ उनका, उनका हक़ उन्हें पाने दो
खिलने दो ख़ुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

चीरहरण का तांडव अब भी
चुप बैठे हैं पांडव अब भी
नारी अब भी दहशत में है
खेल रहे हैं कौरव अब भी
हे केशव! नारी को ही अब चंडी बनकर आने दो
खिलने दो ख़ुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

मरे हुए इक रावण को
हर साल जलाते हैं हम लोग
ज़िन्दा रावण-कंसों से तो
आँख चुराते हैं हम लोग
ख़ून हुआ है अपना पानी, उसमें आग लगाने दो
खिलने दो ख़ुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

नारी शक्ति, नारी भक्ति
नारी सृष्टि, नारी दृष्टि
आँगन की तुलसी है नारी
पूजा की कलसी है नारी
नेह-प्यार, श्रद्धा है नारी
बेटी, पत्नी, माँ है नारी
नारी के इस विविध रूप को आँगन में खिल जाने दो
खिलने दो ख़ुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो