भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बांची तो थी मैंने / कन्हैयालाल नंदन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन | |रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन | ||
− | }} {{KKVID|v= | + | }} {{KKVID|v=NvTwbTj4krM}} |
<poem> | <poem> | ||
− | + | बाँची तो थी मैंने खण्डहरों में लिखी हुई इबारत | |
लेकिन मुमकिन कहाँ था उतना उस वक्त ज्यो का त्यो याद रख पाना | लेकिन मुमकिन कहाँ था उतना उस वक्त ज्यो का त्यो याद रख पाना | ||
और अब लगता है कि बच नहीं सकता मेरा भी इतिहास बन जाना | और अब लगता है कि बच नहीं सकता मेरा भी इतिहास बन जाना | ||
− | कि | + | कि बाँचा तो जाउँगा लेकिन जी न पाउंगा |
</poem> | </poem> |
11:12, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
बाँची तो थी मैंने खण्डहरों में लिखी हुई इबारत
लेकिन मुमकिन कहाँ था उतना उस वक्त ज्यो का त्यो याद रख पाना
और अब लगता है कि बच नहीं सकता मेरा भी इतिहास बन जाना
कि बाँचा तो जाउँगा लेकिन जी न पाउंगा