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"बांची तो थी मैंने / कन्हैयालाल नंदन" के अवतरणों में अंतर
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− | + | बाँची तो थी मैंने खण्डहरों में लिखी हुई इबारत | |
लेकिन मुमकिन कहाँ था उतना उस वक्त ज्यो का त्यो याद रख पाना | लेकिन मुमकिन कहाँ था उतना उस वक्त ज्यो का त्यो याद रख पाना | ||
और अब लगता है कि बच नहीं सकता मेरा भी इतिहास बन जाना | और अब लगता है कि बच नहीं सकता मेरा भी इतिहास बन जाना | ||
− | कि | + | कि बाँचा तो जाउँगा लेकिन जी न पाउंगा |
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11:12, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
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बाँची तो थी मैंने खण्डहरों में लिखी हुई इबारत
लेकिन मुमकिन कहाँ था उतना उस वक्त ज्यो का त्यो याद रख पाना
और अब लगता है कि बच नहीं सकता मेरा भी इतिहास बन जाना
कि बाँचा तो जाउँगा लेकिन जी न पाउंगा