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"जिनसे हम छूट गये / राही मासूम रज़ा" के अवतरणों में अंतर

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जिनसे हम छूट गये अब वो जहां कैसे हैं ।।
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11:17, 1 सितम्बर 2013 का अवतरण

जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं
शाखे गुल कैसे हैं खुश्‍बू के मकाँ कैसे हैं ।।

ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी
उस गली में मेरे पैरों के निशाँ कैसे हैं ।।

कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल
आके देखो मेरी यादों के जहां कैसे हैं ।।

मैं तो पत्‍थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया
आज उस शहर में शीशे के मकाँ कैसे हैं ।।

जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं ।।