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"क्या तकल्लुफ करे ये कहने में / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर
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Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
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|रचनाकार= जॉन एलिया | |रचनाकार= जॉन एलिया | ||
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उसके पहलू से लग के चलते हैं | उसके पहलू से लग के चलते हैं | ||
हम कहाँ टालने से टलते हैं | हम कहाँ टालने से टलते हैं |
11:22, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
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उसके पहलू से लग के चलते हैं
हम कहाँ टालने से टलते हैं
मैं उसी तरह तो बहलता हूँ यारों
और जिस तरह बहलते हैं
वोह है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं
क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं
है उसे दूर का सफ़र दरपेश
हम सँभाले नहीं सँभलते हैं
है अजब फ़ैसले का सहरा भी
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं
हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं
तुम बनो रंग, तुम बनो ख़ुशबू
हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं