भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"महक उठा है आंगन इस खबर से / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार= जॉन एलिया  
 
|रचनाकार= जॉन एलिया  
}}<poem>{{KKVID|v=CjnCvAnEnLo}}
+
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
+
{{KKVID|v=ZpR44gVtwR4}}
 
+
{{KKCatGhazal}}
 +
<poem>
 
महक उठा है आँगन इस ख़बर से
 
महक उठा है आँगन इस ख़बर से
 
वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से  
 
वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से  
पंक्ति 22: पंक्ति 23:
 
मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान   
 
मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान   
 
कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से  
 
कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से  
 
+
</poem>
 
</poem>
 
</poem>

11:37, 1 सितम्बर 2013 का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

महक उठा है आँगन इस ख़बर से
वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से

जुदाई ने उसे देखा सर-ए-बाम
दरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसे

मैं इस दीवार पर चढ़ तो गया था
उतारे कौन अब दीवार पर से

गिला है एक गली से शहर-ए-दिल की
मैं लड़ता फिर रहा हूँ शहर भर से

उसे देखे ज़माने भर का ये चाँद
हमारी चाँदनी छाए तो तरसे

मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान
कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से

</poem>