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"मैं तो मकतल में भी / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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कुर्रा-ए-फाल मेरे  नाम  का  अक्सर  निकला  
 
कुर्रा-ए-फाल मेरे  नाम  का  अक्सर  निकला  
  
था  जिन्हे  जों वोह दरया  भी  मुझी  मैं  डूबे  
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था  जिन्हे  जोम वो दरया  भी  मुझी  मैं  डूबे  
मैं  के  सेहरा नज़र  आता  था  समंदर  निकला  
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मैं  ने  उस  जान-ए-बहारां  को  बुहत  याद  किया  
 
मैं  ने  उस  जान-ए-बहारां  को  बुहत  याद  किया  
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शहर  वल्लों  की  मोहब्बत  का  मैं  कायल  हूँ  मगर  
 
शहर  वल्लों  की  मोहब्बत  का  मैं  कायल  हूँ  मगर  
 
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तू यहीं हार गया था मेरे बुज़दिल दुश्मन
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मैं के सहरा-ए-मुहब्बत का मुसाफ़िर हूँ 'फ़राज़'
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12:21, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

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मैं तो मकतल में भी किस्मत का सिकंदर निकला
कुर्रा-ए-फाल मेरे नाम का अक्सर निकला

था जिन्हे जोम वो दरया भी मुझी मैं डूबे
मैं के सहरा नज़र आता था समंदर निकला

मैं ने उस जान-ए-बहारां को बुहत याद किया
जब कोई फूल मेरी शाख-ए-हुनर पर निकला

शहर वल्लों की मोहब्बत का मैं कायल हूँ मगर
मैं ने जिस हाथ को चूमा वोही खंजर निकला

तू यहीं हार गया था मेरे बुज़दिल दुश्मन
मुझसे तनहा के मुक़ाबिल तेरा लश्कर निकला

मैं के सहरा-ए-मुहब्बत का मुसाफ़िर हूँ 'फ़राज़'
एक झोंका था कि ख़ुशबू के सफ़र पर निकला