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"रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में / क़तील" के अवतरणों में अंतर

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रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में
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हमने ख़ुश होके भँवर बाँध लिये पावों में
  
रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में <br>
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उन को भी है किसी भीगे हुए मंज़र की तलाश
हमने ख़ुश होके भँवर बाँध लिये पावों में <br><br>
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बूँद तक बो न सके जो कभी सहराओं में
  
उन को भी है किसी भीगे हुए मंज़र की तलाश<br>
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ऐ मेरे हम-सफ़रों तुम  भी थाके-हारे हो
बूँद तक बो सके जो कभी सहराओं में<br><br>
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धूप की तुम तो मिलावट करो चाओं में
  
ऐ मेरे हम-सफ़रों तुम  भी थाके-हारे हो<br>
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जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज
धूप की तुम तो मिलावट करो चाओं में<br><br>
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बट जाये तेरा बीमार मसीहाओं में
  
जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज<br>
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हौसला किसमें है युसुफ़ की ख़रीदारी का
बट न जाये तेरा बीमार मसीहाओं में<br><br>
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अब तो महंगाई के चर्चे है ज़ुलैख़ाओं में  
  
हौसला किसमें है युसुफ़ की ख़रीदारी का <br>
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जिस बरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है  
अब तो महंगाई के चर्चे है ज़ुलैख़ाओं में <br><br>
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उस को दफ़्नाओ मेरे हाथ की रेखाओं में  
  
जिस बरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है <br>
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वो ख़ुदा है किसी टूटे हुए दिल में होगा
उस को दफ़्नाओ मेरे हाथ की रेखाओं में <br><br>
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मस्जिदों में उसे ढूँढो न कलीसाओं में  
  
वो ख़ुदा है किसी टूटे हुए दिल में होगा<br>
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हम को आपस में मुहब्बत नहीं करने देते
मस्जिदों में उसे ढूँढो न कलीसाओं में <br><br>
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इक यही ऐब है इस शहर के दानाओं में  
  
हम को आपस में मुहब्बत नहीं करने देते<br>
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मुझसे करते हैं "क़तील" इस लिये कुछ लोग हसद
इक यही ऐब है इस शहर के दानाओं में <br><br>
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क्यों मेरे शेर हैं मक़बूल हसीनाओं में  
 
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क्यों मेरे शेर हैं मक़बूल हसीनाओं में <br><br>
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12:47, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

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रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में
हमने ख़ुश होके भँवर बाँध लिये पावों में

उन को भी है किसी भीगे हुए मंज़र की तलाश
बूँद तक बो न सके जो कभी सहराओं में

ऐ मेरे हम-सफ़रों तुम भी थाके-हारे हो
धूप की तुम तो मिलावट न करो चाओं में

जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज
बट न जाये तेरा बीमार मसीहाओं में

हौसला किसमें है युसुफ़ की ख़रीदारी का
अब तो महंगाई के चर्चे है ज़ुलैख़ाओं में

जिस बरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है
उस को दफ़्नाओ मेरे हाथ की रेखाओं में

वो ख़ुदा है किसी टूटे हुए दिल में होगा
मस्जिदों में उसे ढूँढो न कलीसाओं में

हम को आपस में मुहब्बत नहीं करने देते
इक यही ऐब है इस शहर के दानाओं में

मुझसे करते हैं "क़तील" इस लिये कुछ लोग हसद
क्यों मेरे शेर हैं मक़बूल हसीनाओं में