भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुरसत निवंण / शिवराज भारतीय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
 
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
{{KKVID|v=UC0LH6nuQkU}}
 
 
<Poem>
 
<Poem>
 
 
थूं है ग्यान रो सागर मां
 
थूं है ग्यान रो सागर मां
 
म्हैं नैनी-सी गागर मां
 
म्हैं नैनी-सी गागर मां

13:24, 1 सितम्बर 2013 का अवतरण

थूं है ग्यान रो सागर मां
म्हैं नैनी-सी गागर मां
हिरदै रो अंधियारो मेटो
करद्यो घट सैंचन्नण मां

वीणा-पोथी हाथां सो‘वै
हंस घणो मनड़ै नै मौ‘वै
ममता री मूरत रा दरसण
चित रा भाव उजाळै मां

मिनख-मिनख सूं अळगा भाजै
सहम्या-सहम्या डरै नै दाझै
भर-भर बांथां मिला सैंग नै
देख‘र हरखै मुळकै मां

मायड़भासा सिरै विराजै
जण-जण रै कंठां पर साजै
सेवा इणरी करां जलम भर
भाव इणीं में सिरजै मां

ग्यान-गंगा सूं तन-मन तारो
सुरसत ताप हरो थे म्हारो
बिरथा ना जा मिनख जमारो
आसीसां दे सुरसत मां ।