"डोले का गीत / धर्मवीर भारती" के अवतरणों में अंतर
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मिलो जब गांव भर से बात कहना, बात सुनना | मिलो जब गांव भर से बात कहना, बात सुनना | ||
भूल कर मेरा | भूल कर मेरा | ||
− | न हरगिज नाम लेना | + | न हरगिज नाम लेना |
अगर कोई सखी कुछ जिक्र मेरा छेड़ बैठे, | अगर कोई सखी कुछ जिक्र मेरा छेड़ बैठे, | ||
हंसी में टाल देना बात, | हंसी में टाल देना बात, | ||
− | + | आँसू थाम लेना | |
शाम बीते, दूर जब भटकी हुई गायें रंभाएं | शाम बीते, दूर जब भटकी हुई गायें रंभाएं | ||
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तड़पती पगडंडियों से पूछना मेरा पता, | तड़पती पगडंडियों से पूछना मेरा पता, | ||
तुमको बताएंगी कथा मेरी | तुमको बताएंगी कथा मेरी | ||
− | व्यथा हर शाम की | + | व्यथा हर शाम की |
पर न अपना मन दुखाना, मोह क्या उसका | पर न अपना मन दुखाना, मोह क्या उसका | ||
की जिसका नेह छूटा, गेह छूटा | की जिसका नेह छूटा, गेह छूटा | ||
हर नगर परदेश है जिसके लिए, | हर नगर परदेश है जिसके लिए, | ||
− | हर डगरिया राम की | + | हर डगरिया राम की |
भोर फूटे भाभियां जब गोद भर आशीष दे दे, | भोर फूटे भाभियां जब गोद भर आशीष दे दे, | ||
ले विदा अमराइयों से | ले विदा अमराइयों से | ||
चल पड़े डोला हुमच कर, | चल पड़े डोला हुमच कर, | ||
− | है कसम तुमको, तुम्हारे कोंपलों से नैन में | + | है कसम तुमको, |
+ | तुम्हारे कोंपलों से नैन में आँसू न आये | ||
राह में पाकड़ तले | राह में पाकड़ तले | ||
− | सुनसान पा कर | + | सुनसान पा कर |
− | प्रीत ही सब कुछ नहीं है, लोक की मरजाद है सबसे बड़ी | + | प्रीत ही सब कुछ नहीं है, |
+ | लोक की मरजाद है सबसे बड़ी | ||
बोलना रुन्धते गले से | बोलना रुन्धते गले से | ||
− | ले चलो जल्दी चलो पी के नगर | + | ले चलो जल्दी चलो पी के नगर |
पी मिलें जब, | पी मिलें जब, | ||
फूल सी अंगुली दबा कर चुटकियाँ लें और पूछे | फूल सी अंगुली दबा कर चुटकियाँ लें और पूछे | ||
क्यों | क्यों | ||
− | कहो कैसी रही जी यह सफ़र की रात ? | + | कहो कैसी रही जी यह सफ़र की रात? |
− | + | हँस कर टाल जाना बात, | |
− | + | हँस कर टाल जाना बात, आँसू थाम लेना | |
यहाँ अम्बवा तरे रुक एक पल विश्राम लेना, | यहाँ अम्बवा तरे रुक एक पल विश्राम लेना, | ||
− | अगर डोला कभी इस राह से गुजरे | + | अगर डोला कभी इस राह से गुजरे |
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17:51, 4 सितम्बर 2013 का अवतरण
अगर डोला कभी इस राह से गुजरे कुवेला,
यहाँ अम्बवा तरे रुक
एक पल विश्राम लेना,
मिलो जब गांव भर से बात कहना, बात सुनना
भूल कर मेरा
न हरगिज नाम लेना
अगर कोई सखी कुछ जिक्र मेरा छेड़ बैठे,
हंसी में टाल देना बात,
आँसू थाम लेना
शाम बीते, दूर जब भटकी हुई गायें रंभाएं
नींद में खो जाये जब
खामोश डाली आम की,
तड़पती पगडंडियों से पूछना मेरा पता,
तुमको बताएंगी कथा मेरी
व्यथा हर शाम की
पर न अपना मन दुखाना, मोह क्या उसका
की जिसका नेह छूटा, गेह छूटा
हर नगर परदेश है जिसके लिए,
हर डगरिया राम की
भोर फूटे भाभियां जब गोद भर आशीष दे दे,
ले विदा अमराइयों से
चल पड़े डोला हुमच कर,
है कसम तुमको,
तुम्हारे कोंपलों से नैन में आँसू न आये
राह में पाकड़ तले
सुनसान पा कर
प्रीत ही सब कुछ नहीं है,
लोक की मरजाद है सबसे बड़ी
बोलना रुन्धते गले से
ले चलो जल्दी चलो पी के नगर
पी मिलें जब,
फूल सी अंगुली दबा कर चुटकियाँ लें और पूछे
क्यों
कहो कैसी रही जी यह सफ़र की रात?
हँस कर टाल जाना बात,
हँस कर टाल जाना बात, आँसू थाम लेना
यहाँ अम्बवा तरे रुक एक पल विश्राम लेना,
अगर डोला कभी इस राह से गुजरे