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"मुझको क्या-क्या नहीं मिला / शंभुनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर
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सूरज से रेशमी लगाम, | सूरज से रेशमी लगाम, | ||
पूरब से उड़नखटोले | पूरब से उड़नखटोले | ||
पश्चिम से परियाँ गुमनाम। | पश्चिम से परियाँ गुमनाम। | ||
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बादल से झरती रुन-झुन | बादल से झरती रुन-झुन | ||
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धरती से कसते बन्धन, | धरती से कसते बन्धन, | ||
यौवन से गर्म सलाखें | यौवन से गर्म सलाखें | ||
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::पुरखों से टूटी तलवार | ::पुरखों से टूटी तलवार | ||
::बरसों से ज़ंग लगी ढाल! | ::बरसों से ज़ंग लगी ढाल! | ||
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घर से दानव का पिंजड़ा | घर से दानव का पिंजड़ा | ||
द्वार से मसान का धुआँ! | द्वार से मसान का धुआँ! | ||
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::मुझको क्या-क्या नहीं मिला | ::मुझको क्या-क्या नहीं मिला | ||
::मन मे सब-कुछ रखा संभाल! | ::मन मे सब-कुछ रखा संभाल! | ||
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11:13, 10 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
राजा से हाथी घोड़े
रानी से सोने के बाल,
मुझको क्या-क्या नहीं मिला
मन ने सब-कुछ रखा संभाल।
चँदा से हिरनों का रथ
सूरज से रेशमी लगाम,
पूरब से उड़नखटोले
पश्चिम से परियाँ गुमनाम।
रातों से चाँदी की नाव
दिन से मछुए वाला जाल!
बादल से झरती रुन-झुन
बिजली से उड़ते कंगन,
पुरवा से सन्दली महक
पछुवा से देह की छुवन।
सुबहों से जुड़े हुए हाथ
शामों से हिलती रूमाल!
नभ से अनदेखी ज़ंजीर
धरती से कसते बन्धन,
यौवन से गर्म सलाखें
जीवन से अनमाँगा रण।
पुरखों से टूटी तलवार
बरसों से ज़ंग लगी ढाल!
गलियों से मुर्दों की गंध
सड़कों से प्रेत का कुआँ,
घर से दानव का पिंजड़ा
द्वार से मसान का धुआँ!
खिड़की से गूँगे उत्तर
देहरी से चीख़ते सवाल!
मुझको क्या-क्या नहीं मिला
मन मे सब-कुछ रखा संभाल!