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"मँहगाई / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर

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जन - गण - मन के देवता , अब तो आँखें खोल  
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जन-गण मन के देवता, अब तो आँखें खोल  
महँगाई से हो गया , जीवन डाँवाडोल  
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महँगाई से हो गया, जीवन डाँवाडोल  
जीवन डाँवाडोल , ख़बर लो शीघ्र कृपालू  
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जीवन डाँवाडोल, ख़बर लो शीघ्र कृपालू  
कलाकंद के भाव बिक रहे बैंगन - आलू  
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कलाकंद के भाव बिक रहे बैंगन-आलू  
कहँ काका ' कवि , दूध - दही को तरसे बच्चे  
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कहँ 'काका' कवि, दूध-दही को तरसे बच्चे  
आठ रुपये के किलो टमाटर , वह भी कच्चे  
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आठ रुपये के किलो टमाटर, वह भी कच्चे  
 
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राशन की दुकान पर , देख भयंकर भीर  
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राशन की दुकान पर, देख भयंकर भीर  
क्यू में धक्का मारकर , पहुँच गये बलवीर  
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'क्यू' में धक्का मारकर, पहुँच गये बलवीर  
पहुँच गये बलवीर , ले लिया नंबर पहिला  
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पहुँच गये बलवीर, ले लिया नंबर पहिला  
खड़े रह गये निर्बल , बू ढ़े , बच्चे , महिला  
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खड़े रह गये निर्बल, बूढ़े, बच्चे, महिला  
कहँ काका ' कवि , करके बंद धरम का काँटा  
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कहँ 'काका' कवि, करके बंद धरम का काँटा  
लाला बोले - भागो , खत्म हो गया आटा
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लाला बोले-भागो, खत्म हो गया आटा
 
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11:23, 18 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

जन-गण मन के देवता, अब तो आँखें खोल
महँगाई से हो गया, जीवन डाँवाडोल
जीवन डाँवाडोल, ख़बर लो शीघ्र कृपालू
कलाकंद के भाव बिक रहे बैंगन-आलू
कहँ 'काका' कवि, दूध-दही को तरसे बच्चे
आठ रुपये के किलो टमाटर, वह भी कच्चे

राशन की दुकान पर, देख भयंकर भीर
'क्यू' में धक्का मारकर, पहुँच गये बलवीर
पहुँच गये बलवीर, ले लिया नंबर पहिला
खड़े रह गये निर्बल, बूढ़े, बच्चे, महिला
कहँ 'काका' कवि, करके बंद धरम का काँटा
लाला बोले-भागो, खत्म हो गया आटा