भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पशु-पालन / कोदूराम दलित" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कोदूराम दलित |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=कोदूराम दलित  
 
|रचनाकार=कोदूराम दलित  
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
}}
+
}}{{KKCatChhattisgarhiRachna}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
<Poem>
 
<Poem>

11:47, 19 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

हमर देश-मा ये दारी, बाढ़िन हें अड़बड़ मनखे
कोन्हों किसिम पेट-पाले बर हे, हमला सब झन के

बात करौ बिलकुल कमती, अउ काम करो अब ज्यादा
अपन देश के उन्नति-मा, चिटको डारौ झन बाधा

खाये के सब चीज खूब, अब पैदा करना परिही
तभे भुखमरी के भारी, संकट हर जल्दी टरिही

करत हवयं बपुरा किसान-मन, मिल के खेती-बारी
पैदा होये लगिस गजब अब, स्यारी अउर उन्हारी

पर अतके-च अनाज सबो, बर पूर नी सकय भाई
इही पाय के पेट भरे बर, होवत हे कठिनाई

खाये बर अब दूसर चीज, घलो उपजाना चाही
जेला जऊन सुहाय, तऊन चीज-ला खाना चाही

बाग-बगीचा मा हम सुग्घर, फल के पेड़ लगाई
बारी-बखरी मा भाजी-तरकारी बोवत जाई

तरिया-मा, डबरा-मा, कतला-रोही मछरी बोई
एक बछर-मा एक-एक, दस-दस रूपया के होही

पालो गाय, भइंसा अउ छेरी, दही-दूध पाए बर
पोसीं कुकरी-बदक, गार बेंचे बर अउ खाये बर

गाय, भइंस, कुकरी पाले बर, मिलथे ऋण सरकारी
ये धन्धा-मा कतको झन के , दुरिहाइस बेकारी

तुम पशु-पालन, मुर्गी-पालन केंद्र मनन मा जावौ
इन्ह ला पाले-पोसे के, सब बात सीख के आवौ

कांदी, भूँसा, दाना, खरी, बिनौला खूब खवावौ
अपन गाय-गोरू मन-ला, नीरोग बलिष्ठ बनावौ

रखो बने कोठा-मा, मँगसा-भुसड़ी सबो भगावौ
तइहा जुग-कस दूध-घीव के नदिया आज बोहावौ

देबी के पूजा करथौ, 'माता' खातिर मनमानी
तजो अंध बिस्वास, करावत जाव दवाई-पानी

रोगी होते साठ, मवेशी-अस्पताल ले जावौ
खूरा-चपका, माता के 'टीका' उन्ह ला लगवावौ

कुकरा-कुकरी सब्बो के, उहँचे इलाज हर होथै
जो इलाज करवाय नहीं, मुड़ धर के वो रोथै

पालिस 'गऊ' गोपाल-कृष्ण हर दही-दूध तब खाइस
अउर दूध छेरी के, 'बापू-ला' बलवान बनाइस

बने किसिम के पशु-पंछी अब, खूब पालना चाही
बढ़िही उत्पादन हर, खाद्य-समस्या हल हो जाही

जुरमिल के सब रहो प्रेम से, खूब कमावौ खावौ
अउ सुराज के पावन गंगा, घर-घर मा पहुँचावौ