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"फ़कीराना आए सदा कर चले / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर

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फ़क़ीराना आए सदा कर चले
 
फ़क़ीराना आए सदा कर चले
 
 
मियाँ खुश रहो हम दुआ कर चले
 
मियाँ खुश रहो हम दुआ कर चले
 
  
 
जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम  
 
जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम  
 
 
सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले  
 
सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले  
 
  
 
कोई ना-उम्मीदाना करते निगाह
 
कोई ना-उम्मीदाना करते निगाह
 
 
सो तुम हम से मुँह भी छिपा कर चले
 
सो तुम हम से मुँह भी छिपा कर चले
 
  
 
बहोत आरजू थी गली की तेरी
 
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सो याँ से लहू में नहा कर चले
 
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दिखाई दिए यूँ कि बेखुद किया
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हमें आप से भी जुदा कर चले  
 
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जबीं सजदा करते ही करते गई  
 
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हक-ऐ-बंदगी हम अदा कर चले
 
हक-ऐ-बंदगी हम अदा कर चले
 
  
 
परस्तिश की याँ तईं कि ऐ बुत तुझे  
 
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नज़र में सबों की ख़ुदा कर चले
 
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गई उम्र दर बंद-ऐ-फ़िक्र-ऐ-ग़ज़ल  
 
गई उम्र दर बंद-ऐ-फ़िक्र-ऐ-ग़ज़ल  
 
 
सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले
 
सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले
 
  
 
कहें क्या जो पूछे कोई हम से  "मीर"
 
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जहाँ में तुम आए थे, क्या कर चले
 
जहाँ में तुम आए थे, क्या कर चले
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09:27, 20 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

फ़क़ीराना आए सदा कर चले
मियाँ खुश रहो हम दुआ कर चले

जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम
सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले

कोई ना-उम्मीदाना करते निगाह
सो तुम हम से मुँह भी छिपा कर चले

बहोत आरजू थी गली की तेरी
सो याँ से लहू में नहा कर चले

दिखाई दिए यूँ कि बेखुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले

जबीं सजदा करते ही करते गई
हक-ऐ-बंदगी हम अदा कर चले

परस्तिश की याँ तईं कि ऐ बुत तुझे
नज़र में सबों की ख़ुदा कर चले

गई उम्र दर बंद-ऐ-फ़िक्र-ऐ-ग़ज़ल
सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले

कहें क्या जो पूछे कोई हम से "मीर"
जहाँ में तुम आए थे, क्या कर चले