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"होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर

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होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात
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पर हम से तो थमी न कभू मुँह पे आई बात
  
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कहते थे उस से मिलते तो क्या-क्या न कहते लेक
पर हम से तो थमी कभू मुँह पे आई बात<br><br>
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वो आ गया तो सामने उस के न आई बात
  
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बुलबुल के बोलने में सब अंदाज़ हैं मेरे
वो आ गया तो सामने उस के न आई बात<br><br>
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पोशीदा क्या रही है किसु की उड़ाई बात
  
बुलबुल के बोलने में सब अंदाज़ हैं मेरे<br>
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इक दिन कहा था ये के ख़ामोशी में है वक़ार
पोशीदा क्या रही है किसु की उड़ाई बात<br><br>
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अब मुझ ज़ैफ़-ओ-ज़ार को मत कुछ कहा करो
सो मुझ से ही सुख़न नहीं मैं जो बताई बात<br><br>
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अब मुझ ज़ैफ़-ओ-ज़ार को मत कुछ कहा करो<br>
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09:45, 20 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात
पर हम से तो थमी न कभू मुँह पे आई बात

कहते थे उस से मिलते तो क्या-क्या न कहते लेक
वो आ गया तो सामने उस के न आई बात

बुलबुल के बोलने में सब अंदाज़ हैं मेरे
पोशीदा क्या रही है किसु की उड़ाई बात

इक दिन कहा था ये के ख़ामोशी में है वक़ार
सो मुझ से ही सुख़न नहीं मैं जो बताई बात

अब मुझ ज़ैफ़-ओ-ज़ार को मत कुछ कहा करो
जाती नहीं है मुझ से किसु की उठाई बात