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प्रिय न जाओ / मानोशी

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<poem>स्वार्थ मेरा रोकता है, प्रेम कहता प्रिय न जाओ,
चाहती हूँ कह सकूँ पर कहूँ कैसे, प्रिय न जाओ...
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