भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लछुमन रेखा के भितरिये कैद हमार जिनिगिया ना / सुभद्रा वीरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभद्रा वीरेन्द्र |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:31, 1 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

लछुमन रेखा के भितरिये कैद हमार जिनिगिया ना।
छलना आई भेस बदलि, छलि-छलि जाई उमिरिया ना।।
हम ना केकरो आँख क पुतरी
राखीं बक्सा ना हम मुनरी
दरखत खानी टुक्-टुक् ताकीं भोर-साँझ-दुपहिया ना।
सहमि-सहमि क चले सपनवाँ
बिखरल मोती बीनि नयनवाँ
काँटन से अझुराइल खींचे मोर चुनरिया ना।
मन-दरपन कब दरकि क टूटल
आस क गगरी चटकी क फूटल
गहराइल अन्हियारी राति अकुलाइल अँजोरिया ना।
राख में ह सुनगत चिनगारी
उमकि गइल रहिये किलकारी
जमघट बीच अकेला मनवाँ अउँजाइल दरदिया ना।।