"तुम और मैं / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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− | तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग | + | <poem> |
− | और मैं चंचल-गति सुर-सरिता। | + | तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग |
− | तुम विमल हृदय उच्छवास | + | और मैं चंचल-गति सुर-सरिता। |
− | और मैं कांत-कामिनी-कविता। | + | तुम विमल हृदय उच्छवास |
− | तुम प्रेम और मैं शान्ति, | + | और मैं कांत-कामिनी-कविता। |
− | तुम सुरा - पान - घन अन्धकार, | + | तुम प्रेम और मैं शान्ति, |
− | मैं हूँ मतवाली भ्रान्ति। | + | तुम सुरा - पान - घन अन्धकार, |
− | तुम दिनकर के खर किरण-जाल, | + | मैं हूँ मतवाली भ्रान्ति। |
− | मैं सरसिज की मुस्कान, | + | तुम दिनकर के खर किरण-जाल, |
− | तुम वर्षों के बीते वियोग, | + | मैं सरसिज की मुस्कान, |
− | मैं हूँ पिछली पहचान। | + | तुम वर्षों के बीते वियोग, |
− | तुम योग और मैं सिद्धि, | + | मैं हूँ पिछली पहचान। |
− | तुम हो रागानुग के निश्छल तप, | + | तुम योग और मैं सिद्धि, |
− | मैं शुचिता सरल समृद्धि। | + | तुम हो रागानुग के निश्छल तप, |
− | तुम मृदु मानस के भाव | + | मैं शुचिता सरल समृद्धि। |
− | और मैं मनोरंजिनी भाषा, | + | तुम मृदु मानस के भाव |
− | तुम नन्दन - वन - घन विटप | + | और मैं मनोरंजिनी भाषा, |
− | और मैं सुख -शीतल-तल शाखा। | + | तुम नन्दन - वन - घन विटप |
− | तुम प्राण और मैं काया, | + | और मैं सुख -शीतल-तल शाखा। |
− | तुम शुद्ध सच्चिदानन्द ब्रह्म | + | तुम प्राण और मैं काया, |
− | मैं मनोमोहिनी माया। | + | तुम शुद्ध सच्चिदानन्द ब्रह्म |
− | तुम प्रेममयी के कण्ठहार, | + | मैं मनोमोहिनी माया। |
− | मैं वेणी काल-नागिनी, | + | तुम प्रेममयी के कण्ठहार, |
− | तुम कर-पल्लव-झंकृत सितार, | + | मैं वेणी काल-नागिनी, |
− | मैं व्याकुल विरह - रागिनी। | + | तुम कर-पल्लव-झंकृत सितार, |
− | तुम पथ हो, मैं हूँ रेणु, | + | मैं व्याकुल विरह - रागिनी। |
− | तुम हो राधा के मनमोहन, | + | तुम पथ हो, मैं हूँ रेणु, |
− | मैं उन अधरों की वेणु। | + | तुम हो राधा के मनमोहन, |
− | तुम पथिक दूर के श्रान्त | + | मैं उन अधरों की वेणु। |
− | और मैं बाट - जोहती आशा, | + | तुम पथिक दूर के श्रान्त |
− | तुम भवसागर दुस्तर | + | और मैं बाट - जोहती आशा, |
− | पार जाने की मैं अभिलाषा। | + | तुम भवसागर दुस्तर |
− | तुम नभ हो, मैं नीलिमा, | + | पार जाने की मैं अभिलाषा। |
− | तुम शरत - काल के बाल-इन्दु | + | तुम नभ हो, मैं नीलिमा, |
− | मैं हूँ निशीथ - मधुरिमा। | + | तुम शरत - काल के बाल-इन्दु |
− | तुम गन्ध-कुसुम-कोमल पराग, | + | मैं हूँ निशीथ - मधुरिमा। |
− | मैं मृदुगति मलय-समीर, | + | तुम गन्ध-कुसुम-कोमल पराग, |
− | तुम स्वेच्छाचारी मुक्त पुरुष, | + | मैं मृदुगति मलय-समीर, |
− | मैं प्रकृति, प्रेम - जंजीर। | + | तुम स्वेच्छाचारी मुक्त पुरुष, |
− | तुम शिव हो, मैं हूँ शक्ति, | + | मैं प्रकृति, प्रेम - जंजीर। |
− | तुम रघुकुल - गौरव रामचन्द्र, | + | तुम शिव हो, मैं हूँ शक्ति, |
− | मैं सीता अचला भक्ति। | + | तुम रघुकुल - गौरव रामचन्द्र, |
− | तुम आशा के मधुमास, | + | मैं सीता अचला भक्ति। |
− | और मैं पिक-कल-कूजन तान, | + | तुम आशा के मधुमास, |
− | तुम मदन - पंच - शर - हस्त | + | और मैं पिक-कल-कूजन तान, |
− | और मैं हूँ मुग्धा अनजान ! | + | तुम मदन - पंच - शर - हस्त |
− | तुम अम्बर, मैं दिग्वसना, | + | और मैं हूँ मुग्धा अनजान ! |
− | तुम चित्रकार, घन-पटल-श्याम, | + | तुम अम्बर, मैं दिग्वसना, |
− | मैं तड़ित् तूलिका रचना। | + | तुम चित्रकार, घन-पटल-श्याम, |
− | तुम रण-ताण्डव-उन्माद नृत्य | + | मैं तड़ित् तूलिका रचना। |
− | मैं मुखर मधुर नूपुर-ध्वनि, | + | तुम रण-ताण्डव-उन्माद नृत्य |
− | तुम नाद - वेद ओंकार - सार, | + | मैं मुखर मधुर नूपुर-ध्वनि, |
− | मैं कवि - श्रृंगार शिरोमणि। | + | तुम नाद - वेद ओंकार - सार, |
− | तुम यश हो, मैं हूँ प्राप्ति, | + | मैं कवि - श्रृंगार शिरोमणि। |
− | तुम कुन्द - इन्दु - अरविन्द-शुभ्र | + | तुम यश हो, मैं हूँ प्राप्ति, |
− | तो मैं हूँ निर्मल व्याप्ति।< | + | तुम कुन्द - इन्दु - अरविन्द-शुभ्र |
− | + | तो मैं हूँ निर्मल व्याप्ति। | |
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( कविता संग्रह, "परिमल" से ) | ( कविता संग्रह, "परिमल" से ) |
09:14, 15 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग
और मैं चंचल-गति सुर-सरिता।
तुम विमल हृदय उच्छवास
और मैं कांत-कामिनी-कविता।
तुम प्रेम और मैं शान्ति,
तुम सुरा - पान - घन अन्धकार,
मैं हूँ मतवाली भ्रान्ति।
तुम दिनकर के खर किरण-जाल,
मैं सरसिज की मुस्कान,
तुम वर्षों के बीते वियोग,
मैं हूँ पिछली पहचान।
तुम योग और मैं सिद्धि,
तुम हो रागानुग के निश्छल तप,
मैं शुचिता सरल समृद्धि।
तुम मृदु मानस के भाव
और मैं मनोरंजिनी भाषा,
तुम नन्दन - वन - घन विटप
और मैं सुख -शीतल-तल शाखा।
तुम प्राण और मैं काया,
तुम शुद्ध सच्चिदानन्द ब्रह्म
मैं मनोमोहिनी माया।
तुम प्रेममयी के कण्ठहार,
मैं वेणी काल-नागिनी,
तुम कर-पल्लव-झंकृत सितार,
मैं व्याकुल विरह - रागिनी।
तुम पथ हो, मैं हूँ रेणु,
तुम हो राधा के मनमोहन,
मैं उन अधरों की वेणु।
तुम पथिक दूर के श्रान्त
और मैं बाट - जोहती आशा,
तुम भवसागर दुस्तर
पार जाने की मैं अभिलाषा।
तुम नभ हो, मैं नीलिमा,
तुम शरत - काल के बाल-इन्दु
मैं हूँ निशीथ - मधुरिमा।
तुम गन्ध-कुसुम-कोमल पराग,
मैं मृदुगति मलय-समीर,
तुम स्वेच्छाचारी मुक्त पुरुष,
मैं प्रकृति, प्रेम - जंजीर।
तुम शिव हो, मैं हूँ शक्ति,
तुम रघुकुल - गौरव रामचन्द्र,
मैं सीता अचला भक्ति।
तुम आशा के मधुमास,
और मैं पिक-कल-कूजन तान,
तुम मदन - पंच - शर - हस्त
और मैं हूँ मुग्धा अनजान !
तुम अम्बर, मैं दिग्वसना,
तुम चित्रकार, घन-पटल-श्याम,
मैं तड़ित् तूलिका रचना।
तुम रण-ताण्डव-उन्माद नृत्य
मैं मुखर मधुर नूपुर-ध्वनि,
तुम नाद - वेद ओंकार - सार,
मैं कवि - श्रृंगार शिरोमणि।
तुम यश हो, मैं हूँ प्राप्ति,
तुम कुन्द - इन्दु - अरविन्द-शुभ्र
तो मैं हूँ निर्मल व्याप्ति।
( कविता संग्रह, "परिमल" से )