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"पथ आंगन पर रखकर आई / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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− | घर के जन हुये प्रसन्न-वदन, अतिशय सुख से छलके लोचन, | + | घर के जन हुये प्रसन्न-वदन, अतिशय सुख से छलके लोचन, |
− | प्रिय की वाणी का अमन्त्रण लेकर जैसे ध्वनि सरसाई।< | + | प्रिय की वाणी का अमन्त्रण लेकर जैसे ध्वनि सरसाई। |
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09:16, 15 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
पल्लव - पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली,
बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई।
झोंके पुरवाई के लगते, बादल के दल नभ पर भगते,
कितने मन सो-सोकर जगते, नयनों में भावुकता छाई।
लहरें सरसी पर उठ-उठकर गिरती हैं सुन्दर से सुन्दर,
हिलते हैं सुख से इन्दीवर, घाटों पर बढ आई काई।
घर के जन हुये प्रसन्न-वदन, अतिशय सुख से छलके लोचन,
प्रिय की वाणी का अमन्त्रण लेकर जैसे ध्वनि सरसाई।