भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पथ आंगन पर रखकर आई / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
पल्लव - पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली,<br>
+
<poem>
बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई। <br><br>
+
पल्लव - पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली,
 +
बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई।  
  
झोंके पुरवाई के लगते, बादल के दल नभ पर भगते,<br>
+
झोंके पुरवाई के लगते, बादल के दल नभ पर भगते,
कितने मन सो-सोकर जगते, नयनों में भावुकता छाई।<br><br>
+
कितने मन सो-सोकर जगते, नयनों में भावुकता छाई।
  
लहरें सरसी पर उठ-उठकर गिरती हैं सुन्दर से सुन्दर,<br>
+
लहरें सरसी पर उठ-उठकर गिरती हैं सुन्दर से सुन्दर,
हिलते हैं सुख से इन्दीवर, घाटों पर बढ आई काई।<br><br>
+
हिलते हैं सुख से इन्दीवर, घाटों पर बढ आई काई।
  
घर के जन हुये प्रसन्न-वदन, अतिशय सुख से छलके लोचन,<br>
+
घर के जन हुये प्रसन्न-वदन, अतिशय सुख से छलके लोचन,
प्रिय की वाणी का अमन्त्रण लेकर जैसे ध्वनि सरसाई।<br><br>
+
प्रिय की वाणी का अमन्त्रण लेकर जैसे ध्वनि सरसाई।
 +
</poem>

09:16, 15 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

पल्लव - पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली,
बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई।

झोंके पुरवाई के लगते, बादल के दल नभ पर भगते,
कितने मन सो-सोकर जगते, नयनों में भावुकता छाई।

लहरें सरसी पर उठ-उठकर गिरती हैं सुन्दर से सुन्दर,
हिलते हैं सुख से इन्दीवर, घाटों पर बढ आई काई।

घर के जन हुये प्रसन्न-वदन, अतिशय सुख से छलके लोचन,
प्रिय की वाणी का अमन्त्रण लेकर जैसे ध्वनि सरसाई।