"हब्बीडो़ / कानदान कल्पित" के अवतरणों में अंतर
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16:08, 15 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
झटक झाड़बड़ रटक सूड़ पर,बाजण दै भच्चीडो़ रे ,
बेली धीरो रे ।
निरेताळ री झाटक राटक , उठ्ठण दे हब्बीडो़ रे,
बेली धीरो रे ।
खटक बसोलो रटक बजावै,हळ थाटै खातीडो़ रे ।
पीळै बादळ खेत पूगियो, हळ ले कर हाळीडो़ रे ।
भातो ले भतवारयां हाली,ले बळद्यां रै नीरो रे ।
बेली धीरो रे ।
झटक झाड़बड़ रटक सूड़ पर,बाजण दै भच्चीडो़ रे ,
बेली धीरो रे ।
फ़ाटी-सी धोती अंगरखी,हूगी लीरो-लीरो रे ।
रगत पसीनो धरती सींचै,ओ लाडेसर कीं रो रे ।
जीवत खाल तावडै़ बाळै,ओ कुण मस्त फ़कीरो रे ।
बेली धीरो रे ।
झटक झाड़बड़ रटक सूड़ पर,बाजण दै भच्चीडो़ रे ,
बेली धीरो रे ।
पेट पड़यो पातळियो खाली ,भूखो हळियो बावै है ।
भूख-तिरस नै मार तपस्वी,पच-पच खेत कमावै है ।
उतर खालडी़ बांठां लागै ,जद आवै कातीरो रे ।
बेली धीरो रे ।
झटक झाड़बड़ रटक सूड़ पर,बाजण दै भच्चीडो़ रे ,
बेली धीरो रे ।
हिमत राखज्यै मत घबराई,दुख घणेरा आवैला ।
अलख जगा खेतां में बेली, हीरा बिणज कमावैला ।
आवैला मैणत कर बाळद,लाख-लाख रो हीरो रे
बेली धीरो रे ।
झटक झाड़बड़ रटक सूड़ पर,बाजण दै भच्चीडो़ रे ,
बेली धीरो रे ।
मुरधर री धोरा धरती रो,मीठो-गुटक मतीरो रे ।
टीबै माथै बैठ साथीडा़,कनक-काकडी़ चीरो रे ।
खटमीठा काचर रसभीणा ,स्वाद अनोखो बीं रो रे ।
बेली धीरो रे ।
झटक झाड़बड़ रटक सूड़ पर,बाजण दै भच्चीडो़ रे ,
बेली धीरो रे ।
निरेताळ री झाटक राटक , उठ्ठण दे हब्बीडो़ रे,
बेली धीरो रे ।