भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दादोसा रो उणियारो / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा | |संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatRajasthaniRachna}} | |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
पंक्ति 27: | पंक्ति 27: | ||
म्हैं जोवूं नीम में | म्हैं जोवूं नीम में | ||
दादोसा रो उणियारो। | दादोसा रो उणियारो। | ||
− | |||
− | |||
</Poem> | </Poem> |
23:34, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
दादोसा कैंवता
गाछ आपणा सागड़दी है।
बाखळ में
बरसां सूं खड्यो
बूढ़ियो नीम
अर वीं री छिंया में
माची ढ़ाळ‘र बैठ्या
दादोसा
जाणै करता गुरबत।
दादोसा री ओळूं रो
पड़तख रूप्
नीम रो बूढ़ो दरखत
आपरी छिंया रै मिस
म्हारै सिर माथै
हाथ फेरै।
म्हैं जोवूं नीम में
दादोसा रो उणियारो।