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|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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खेत रै मारग
म्हैं सुणीं
मानता री कोनी दरकार
राग-रंग, हरख अर पीड़ री
हुवै सदीव एक ई भासा ! </Poempoem>