भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"म्हनैं ठाह है : एक / रमेश भोजक ‘समीर’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatRajasthaniRachna}} |
− | {{KKCatKavita}}<poem>म्हनैं ठाह है | + | {{KKCatKavita}} |
+ | <poem>म्हनैं ठाह है | ||
उतावळो है दुसासन | उतावळो है दुसासन | ||
आपवाळां रो | आपवाळां रो |
11:12, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण
म्हनैं ठाह है
उतावळो है दुसासन
आपवाळां रो
चीर-हरण खातर
अर आपां
हाथ माथै हाथ धर्यां
बैठां हां
एक-दूजै सूं अळघा
दूर.. दूर... दूर....
घणा-घणा दूर
कोसां रै आंतरै माथै
फगत उडीकां हां-
किसन नैं!