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"सुपारी / हरीश बी० शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem>सरोते रे बीच फंसी सुपारी बोले कटक अर दो फाड़ हुय जावै जित्ता कट…)
 
 
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<poem>सरोते रे बीच फंसी सुपारी
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सरोते रे बीच फंसी सुपारी
 
बोले कटक
 
बोले कटक
 
अर दो फाड़ हुय जावै
 
अर दो फाड़ हुय जावै
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अर सुभाव है-स्वाद देवणों
 
अर सुभाव है-स्वाद देवणों
 
तो ओळभो अर शबासी कैने
 
तो ओळभो अर शबासी कैने
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15:03, 17 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

सरोते रे बीच फंसी सुपारी
बोले कटक
अर दो फाड़ हुय जावै
जित्ता कटक बोलै
बित्ता अंस बणावै
लोग केवै सुपारी काटी नीं जावै
तद ताणी
मजो नीं आवै-खावण रो
आखी सुपारी तो पूजण रे काम आवै
पूजायां बाद
कुंकु-मोळी सागै पधरा दी जावै
स्वाद समझणिया सरोता राखै
बोलावे कटक
अर थूक सागै, जीभ माथै
रपटावंता रेवै सुपारी ने
सुपारी बापड़ी या सुभागी
जे जूण में आई है-लकड़ां री
अर सुभाव है-स्वाद देवणों
तो ओळभो अर शबासी कैने