भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हरित नव पल्लव द्रुम डोलत है बार-बार / महेन्द्र मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
06:18, 22 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
हरित नव पल्लव द्रुम डोलत है बार-बार,
विविध बयार खूब फूल की बहार है।
बने हैं कियारी फुलवारी बहुभाँतिन के,
बहुते गुलाबी आबो फूले सब डार हैं।
बोलत सुक सारिका वो कोकिल कल गान करे,
मालिन को प्रेम प्यारे अगम अपार हैं।
द्विज महेन्द्र रामचन्द्र चलो जी हमारे संग,
जनक जी के बाग में बसंत की बहार है।