भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"काश, हम पक्षी हुए होते / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:58, 23 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

काश !
हम पक्षी हुए होते
इन्हीं आदिम जंगलों में घूमते हम
 
नदी का इतिहास पढ़ते
दूर तक फैली हुई इन घाटियों में
पर्वतों के छोर छूते
रास रचते इन वनैली वीथियों में
 
फुनगियों से
बहुत ऊपर चढ़
हवा में नाचते हम
 
इधर जो पगडंडियाँ हैं
वे यहीं हैं खत्म हो जातीं
बहुत नीचे खाई में फिरती हवाएँ
हमें गुहरातीं
 
काश !
उड़कर
उन सभी गहराइयों को नापते हम
 
अभी गुज़रा है इधर से
एक नीला बाज़ जो पर तोलता
दूर दिखती हिमशिला का
राज़ वह है खोलता
 
काश !
हम होते वहीं
तो हिमगुफा के सुरों की आलापते हम