भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"३१ अगस्त / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} {{KKCatNazm}} <poem>इस दिन कई बा...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:54, 26 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

इस दिन कई बार
फोन की घंटी बजती है
'जन्म -दिन मुबारक हो हीर '
के शब्द सुन
मैं भीग जाती हूँ भीतर तक
कितनी कणिकाएं आकाश से
उतर आती हैं
हथेली पर …
मैं चीखना चाहती हूँ
नहीं … नहीं आज मेरा जन्म -दिन नहीं
पर लापता हो जाते हैं शब्द
और मैं शब्दों को तलाशती
कब्रों पर जा बैठती हूँ
जो जाते वक़्त मुहब्बत
दबा गई थी
मिटटी के अन्दर ….