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"एक सपना जी रही हूँ / मानोशी" के अवतरणों में अंतर

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<poem>एक सपना जी रही हूँ
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एक सपना जी रही हूँ
  
 
पारदर्शी काँच पर से
 
पारदर्शी काँच पर से

10:27, 31 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

एक सपना जी रही हूँ

पारदर्शी काँच पर से
टूट-बिखरे झर रहे कण
  विहँसता सा खिल रहा है
आँख चुँधियाता हर इक क्षण
  कुछ दिनों का जानकर सुख
मधु कलश सा पी रही हूँ

एक सपना जी रही हूँ

वह अपरिचित स्पर्श जिसने
छू लिया था मेरे मन को
अनकही बातों ने फिर धीरे
से खोली थी गिरह जो
और तब से जैसे हाला
जाम भर कर पी रही हूँ
 
एक सपना जी रही हूँ

इक सितारा माथ पर जो
तुमने मेरे जड़ दिया था
और भँवरा बन के अधरों
से मेरे रस पी लिया था
उस समय के मदभरे पल
ज्यों नशे में जी रही हूँ

एक सपना जी रही हूँ