भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रिय क्या हो जो हम बिछडें तो / मानोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('<poem>प्रिय नहीं आना अब सपनों में स्मृति को आलिंगन कर म...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | <poem>प्रिय नहीं आना अब सपनों में | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=मानोशी | ||
+ | |अनुवादक= | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatGeet}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | प्रिय नहीं आना अब सपनों में | ||
स्मृति को आलिंगन कर मुझको | स्मृति को आलिंगन कर मुझको | ||
रहने दो बस अब अपनों में | रहने दो बस अब अपनों में |
10:28, 31 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
प्रिय नहीं आना अब सपनों में
स्मृति को आलिंगन कर मुझको
रहने दो बस अब अपनों में
प्रिय नहीं आना अब सपनों में
कितने पल ही उधड़े मैंने
उलझे थे उस इंद्र धनुष में
जिसको हमने साथ गढ़ा था
रंग भरे थे रिक्त क्षणों में
प्रिय नहीं आना अब सपनों में
रुमझुम गीतों के नूपुर में
जड़ दी थीं जो गुनगुन बातें
उस सुर से बुन मैंने बाँधी
गाँठ स्वप्न से मेरे नयनों में
प्रिय नहीं आना अब सपनों में
कभी खनक उठते हँसते पल
फिर आँसू से सीले लम्हें
कभी मादक सी उन शामों को
बह जाने दो अब झरनों में
प्रिय नहीं आना अब सपनों में