भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रहबरे-कौम, रहनुमा तुम हो / रमेश 'कँवल'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश 'कँवल' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:08, 23 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण

रहबरे-क़ौम, रहनुमा तुम हो
नाउमीदों का आसरा तुम हो

मैं सियासत की बेर्इमान गली
और रिश्वत की अप्सरा तुम हो

गालियों में तलाशता हूँ शहद
राजनीति का ज़ायक़ा तुम हो

चौक परकी है, बहस चौका में
सेक्युलर मैं हूँ, भाजपा तुम हो

फ़स्ले-बेरोजगारी हैं दोनों
मैं हूँ स्कूल, शिक्षिका तुम हो

मुझको क्या इससे फ़र्क़ पड़ने का
मैंने माना कि दूसरा तुम हो

क़ुरबतें सीढि़यों से उतरेंगी
लोग समझेंगे फ़ासला तुम हो

आवरण मैं उदासियों का'कंवल'
नथ मे जो, वो क़हक़हा तुम हो