भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सुनहरी यादों के जंगल में खो गयी होगी / रमेश 'कँवल'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश 'कँवल' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:00, 4 जनवरी 2014 के समय का अवतरण
सुनहरी यादों के जंगल में खो गर्इ होगी
वो गुज़रे लम्हों की चौखट पे सो गर्इ होगी
मैं अपनी ज़िद के दरीचे से झांकता ही रहा
अना1 के मोड़ से वापस वो हो गर्इ होगी
दराज़ बाहों के पिंजडे़ में तड़फड़ाती हुर्इ
वो देवदासी दुपटटा भिगो गर्इ होगी
ये सोचकर कि इक स्पर्श में मिटा देगा
वो एक मौज किनारा डुबो गर्इ होगी
मुझे भी नीला समुंदर निगल रहा है 'कंवल’
वो चांदनी भी जज़ीरों2 में खो गर्इ होगी
1.अहं, अंहकार 2. द्वीप, टापू