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"वह जो लगता था पयम्बर इक दिन / रमेश 'कँवल'" के अवतरणों में अंतर

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18:12, 4 जनवरी 2014 के समय का अवतरण

वह जो लगता था पयम्बर इक दिन
अपना ही भूल गया घर इक दिन

कांच का घर उसे याद आयेगा
खूब पछतायेगा पत्थर इक दिन

ठंड पंहुचायेगा,राहत देगा
रेत का गर्म ये बिस्तर इक दिन

लाज रख लेगी तेरे जज़्बों की
मेरे अहसास की चादर इक दिन

आतिशे-वक़्त में तपते तपते
हीरे बन जायेंगे कंकर इक दिन

लुत्फ़े-शोहरत2 मुझे दे जायेगा
तपते लफ़्ज़ों3 का समुंदर इकदिन

पाप जल जायेगा दुनिया का 'कंवल’
आंख जब खोलेगा शंकर इक दिन


1. समयकीअग्नि , 2. ख्यातिकाहर्ष, 3. शब्दों।